Impossible To Use Aadhaar To Track Citizens – UIDAI Tells Supreme Court
Impossible To Use Aadhaar To Track Citizens – UIDAI Tells Supreme Court
It is virtually impossible to use Aadhaar to track citizens, the agency that has issued the identification number to millions of Indians told the Supreme Court on Tuesday. The Unique Identification Authority of India, or UIDAI, said there were safeguards built into the law and its systems to ensure that the government could not use Aadhaar for surveillance even if a court were to permit them.
The agency also suggested that too much was being made of privacy being a fundamental right. “Nothing is private in the online era,” Additional Solicitor General Tushar Mehta told a nine-judge constitution bench that is considering whether privacy is a fundamental right of every citizen.
If the court holds that it was a fundamental right, it could have implications for Aadhaar, and the agency that issues the numbers, UIDAI.
The central government also informed the top court that a 10-member expert committee headed by retired Supreme Court judge Justice BN Srikrishna had been set up to suggest a draft bill on data protection.
The UIDAI was first set up to issue Aadhaar numbers in 2009. But because parliament could not pass the law to give legal cover to the unique identification number, the agency had to collect personal information about residents under executive instructions.
The top court had been hearing petitions that questioned collection of private information from citizens without any legal backing. Last year, parliament finally passed the law. But it had earlier contested the claim that privacy was a fundamental right. Since two courts had earlier differed, the Supreme Court set up the nine-judge bench to arrive at a definitive view.
The UIDAI, like the central government and some state governments ruled by the BJP, has claimed that privacy was protected under the Aadhaar law but wasn’t a constitutional right. On Tuesday, the agency also told the top court that privacy need not be elevated to a fundamental right.
Hindi Version
UIDAI को लेकर आम जनता की चिंता को कम करते हुए संगठन के एडिशनल सॉलिसिटर ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार चाहे भी तो नागरिकों की जासूसी में आधार का इस्तेमाल नहीं कर सकती है, क्योंकि ये तकनीकी रूप से मुमकिन ही नहीं है.
किसी भी मकसद के लिए नहीं दी जा सकती हैं डीटेल्स
UIDAI के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली नौ जजों की बेंच को यह जानकारी दी. तुषार मेहता ने कहा कि अगर सरकार को किसी कोर्ट के आदेश से यह राइट भी मिल जाए कि किसी व्यक्ति ने किस मकसद से अपनी आइडेंटिटी को ऑथेंटिकेट किया है, उसे ये डीटेल्स नहीं मिल पाएंगे.
मेहता ने यह भी बताया कि अदालत प्राइवेसी को फंडामेंटल राइट माने या न माने, लेकिन ऑनलाइन वर्ल्ड में प्राइवेसी जैसी कोई चीज है ही नहीं. उन्होंने कोर्ट से कहा कि पिछले हफ्ते सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक हाई-लेवल कमेटी बनाई थी और कमेटी को डेटा प्रोटेक्शन के मसलेे पर गौर कर मुश्किलों से निपटने के सुझाव देने का जिम्मा दिया गया था.
प्राइवेसी का कोई फंडामेंटल राइट नहीं: सरकार
यह बहस तब तेज हुई जब सरकार ने आधार स्कीम का बचाव करते हुए कोर्ट में दावा किया कि लोगों के पास प्राइवेसी का कोई फंडामेंटल राइट है ही नहीं. आधार का विरोध करने वालों ने सरकारी की दलील पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद जस्टिस खेहर ने इस मामले पर निर्णय लेने के लिए नौ जजों की बेंच बनाई थी.
प्राइवेसी के सभी पहलुओं को फंडामेंटल राइट का दर्जा नहीं
अगर कोर्ट में प्राइवेसी को फंडामेंटल राइट माना गया तो सरकार को साबित करना होगा कि ऐसे वाजिब प्रतिबंध हैं, जिनसे ऐसे अधिकार को सीमित किया जा सकता है. अभी इस मसले पर एक सामान्य बेंच विचार करेगी. सरकार ने अब तक इस बात पर जोर दिया है कि प्राइवेसी एक अहम कॉमन लॉ है, लेकिन यह फंडामेंटल राइट नहीं है. अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा था, ‘प्राइवेसी के सभी पहलुओं को फंडामेंटल राइट का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. जिसके बाद बीजेपी शासित प्रदेशों ने भी इस रुख का समर्थन किया है.